आज बड़े दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ है
आओ बैठो गुफ्तगू करते हैं….
तेरी यादों को ताले में कैद करके उसकी चाबी को घुमाना चाहता हूं
अपने रिश्ते को गुमनाम करके सीधा मुंह दिखाई पर शोर मचाना चाहता हूं ,
पता नहीं क्यों आज बड़े दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ है
आओ बैठो गुफ्तगू करते हैं….
जिम्मेदारियों के मैदान में अक्सर मगन रहते हैं हम
रोज लोगों की बातों से ठोकरें खाते हैं हम
क्या करें जनाब घर के बड़े लड़के जो ठहरे हम …
आज बड़े दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ है
आओ बैठो गुफ्तगू करते हैं…
तस्वीर के हर दूसरे पहलू पर अक्सर लड़कों को दर्शाया जाता है
हमें इन चार दीवारों के अलावा कोई चाहिए जिसे पता हो कि आंसू छलक रहे हैं…
कोई तो हो जो आंसू को मन का भार समझे
यूं बेवजह उसे कमजोरी का नाम ना दें …
आज बड़े दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ है आओ बैठो गुफ्तगू करते हैं ….
अच्छा छोड़ो आओ अपने खटास के बीज को बोते हैं
जमाने बाद इसी की छांव में बैठेंगे अपने ही बॉय हुए खटास के बीज से रस से भरे फलों के आनंद को बट ओरेंगे
आज बड़े दिनों बाद कुछ लिखने का मन हुआ है
आओ बैठो गुफ्तगू करते हैं, आओ बैठो गुफ्तगू करते हैं…!
Archita Oberoi
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