मेरी जिंदगानी

इतनी सी मेरी जिंदगानी है

यूं ही नहीं मैं ,
इतना मजबूत बन पाया हूं ।
रोज मर मर कर जीने का ,
हुनर सीख पाया हूं ।
कई मौसम की फटकार ,
चुपचाप सुन कर आया हूं।
तभी जज्बा जीने का,
अभी तक ना मार पाया हूं ।
बारिशों ने भी मुझे ,
रंग खूब है दिखाया ,
नंगे बदन को मेरे,
कई बार है भिगाया ।
कभी धूप में जल गए पैर मेरे,
तो कभी सर्दी से ये बदन कपकपाया।
ऐसा नहीं है ,
लोगों को मुझ पर ,
तरस ना आया,
कंबल दिया मुझे एक जनाब ने ,
साथ में फोटो भी था खिंचवाया ।
पर उसके बाद आज तक,
कोई हालात जानने ना आया।
तर्क बहुत दिए सब ने ,
“चार हाथ पैर हैं ,
कमा सकते हो,
फिर क्यों सड़कों पर घूम रहे हो।”
पर शुरुआत कैसे करनी है,
यह रास्ता किसी ने ना बताया ।
एक रोटी की चाह मेरी,
जिंदगी मेरी राहों की कहानी है ।
मैं भी भिखारी हूं,
मांगना मेरी आदत है ।
बस इतनी सी मेरी जिंदगानी है।

~Shivani Kumari

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