आज इस कलम को उठाते हुए रूह काँप रही थी!
मान को झंझोरने वाली इन हालातों को डायरी में लिखने का मन किया! साथियों गौर से सुनिए गा-
यह सड़के यह चोराहे हर गली गली सुनसान है;
आज हवा में उड़ रहे पंछी और पिंजरे में बंद इंसान है!
मत घबराओ मेरे साथियों;
यह उगता हिंदुस्तान है यह बढ़ता हिंदुस्तान है
यह लड़ता हिंदुस्तान है!
आज ना मंदिर में ना मस्जिद में ना गुरुद्वारे में भगवान है;
श्वेत लिबास में दर्द मिटा रहा वह मेरा भगवान है
देखो तुम्हारे लिए युद्ध लड़ रहे हमारे वीर जवान हैं;
अपनी भूख प्यास को छोड़ ऐसे भारत के वीर महान हैं!
यह कैसी महामारी विचित्र बीमारी काली घटा बनकर छाई है;
दर्द में तड़प कर मर जाए मनुष्य ऐसी पीड़ा लाई है!
क्या अमेरिका क्या इटली पूरे विश्व पर शामत आई है;
सब मिलकर लड़ो साथियों यह नर्क की परछाई है!
आज हमारी जन्मभूमि पर ना कमल ना हाथ है;
बन गया यह देश कुटुंबकम हर बच्चा बच्चा साथ है!
हम सिर्फ एक नहीं हर दिन थाली शंख बजाएंगे..
इस दुख की घड़ी को भूल खुशियों के गीत गाएंगे….
जल्द खत्म हो जाएगा यह दिन मिलकर जश्न मनाएंगे उठो साथियों हम योद्धा बनकर इस मिट्टी को बचाएंगे!
हाथ जोड़कर विनती है लक्ष्मण रेखा पार ना करना
वक्त लगेगा थोड़ा तब तक अपने घर में रहना;
घर के अच्छे मुखिया बनना नहीं तो पड़ेगा सबको सहना! सब लड़ेंगे तुम मत डरना जड़ से मिट जाएगी यह बीमारी विचित्र करोना!
क्योंकि मुझे इस देश पर अभिमान है मत डरो साथियों….
यह उठता हिंदुस्तान है!
यह बढ़ता हिंदुस्तान है!
यह लड़ता हिंदुस्तान है!
आँचल नलवाया
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