12 बरस

मेरी एक चीज़ गुमी है
12 बरस बीत गए
मिल नहीं रही हैं।
खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई देती है
देखूं तो दिखाई नही पडती
दिखाई पड़ भी जाए
घर मे इधर उधर दौड़ती हुई
तो पकड़ में नहीं आती।
एक दिन लगा कही बालो में तो नही उलझी!
सो बाल काट लिए
कुछ हाथ ना लगा।
फिर लगा दुप्पट्टे में तो नही!
दुप्पट्टा उतारा
कुछ हाथ ना लगा।
फिर एक दिन रसोई भी छान ली
कुछ नही मिला
सोचा कही छत पर तो नही मंडरा रही!
वहां जाके देखा
तो मेरे पौधों के सिवा कुछ ना मिला।
लगता है जैसे कल की ही तो बात थी
वो मेरे पास थी
फिर लगता है
हाय! कितने युग बीत गए।
फिर पता चला की
वो तो मेरे होंठों में छिपी है
डरी हुई, सहमी हुई
छुपी है मेरी योनि में
मेरे नितंब में
और सबसे ज्यादा छुपी हैं
मेरी छाती में
काश! मैं उसे आज़ाद करा पाती
मगर अब छाती तो नही काट सकती ना!
मेरी ‘मासूमियत’ गुमी है
12 बरस बीत गए
मिल नही रही है
न जाने घर की दीवारें खा गयी
या घर की जिम्मेदारियां
या खा गए उसे
मेरें शरीर के बढ़ते अंग।।

Shaifali Singh

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1 Comment

Aviral Saini · August 27, 2020 at 16:34

♥️♥️♥️

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