मेरी एक चीज़ गुमी है
12 बरस बीत गए
मिल नहीं रही है।
खिलखिलाने की आवाज़ सुनाई देती है
देखूं तो दिखाई नही पड़ती
दिखाई पड़ भी जाए
घर मे इधर उधर दौड़ती हुई
तो पकड़ में नहीं आती।
एक दिन लगा कहीं बालो में तो नही उलझी!
सो बाल काट लिए
कुछ हाथ ना लगा।
फिर लगा दुप्पट्टे में तो नही!
दुप्पट्टा उतारा
कुछ हाथ ना लगा।
फिर एक दिन रसोई भी छान ली
कुछ नही मिला
सोचा कहीं छत पर तो नही मंडरा रही!
वहां जाके देखा
तो मेरे पौधों के सिवा कुछ ना मिला।
लगता है जैसे कल की ही तो बात थी
वो मेरे पास थी
फिर लगता है
हाय! कितने युग बीत गए।
फिर पता चला की
वो तो मेरे होंठों में छिपी है
डरी हुई, सहमी हुई
छुपी है मेरी योनि में
मेरे नितंब में
और सबसे ज्यादा छुपी हैं
मेरी छाती में
काश! मैं उसे आज़ाद करा पाती
मगर अब छाती तो नही काट सकती ना!
मेरी ‘मासूमियत’ गुमी है
12 बरस बीत गए
मिल नही रही है
न जाने घर की दीवारें खा गयी
या घर की जिम्मेदारियां
या खा गए उसे
मेरे शरीर के बढ़ते अंग।।
© Shaifali Singh
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69 Comments
adi · August 9, 2020 at 13:34
😍 beautiful
Mohit Chaudhary · August 9, 2020 at 13:32
Amazing 🌸🌸
Sandeep Rawat · August 9, 2020 at 16:27
Keep it Up…. ✨😍
In love😜❤
From
Sandy(MCM) 🤣
Sagar · August 9, 2020 at 13:28
Amazing 🤩
Harshit · August 9, 2020 at 13:27
Nice🔥
Aanchal Rana · August 9, 2020 at 13:26
Oh my god! Just wow broo🥺😍
So damn amazing seriously….🥺💖
Ashish Rajput · August 9, 2020 at 13:25
🔥🔥🔥
Kartik · August 9, 2020 at 13:23
Awesome 💯
Mayank Ahuja · August 9, 2020 at 12:46
fabulous
Dev · August 9, 2020 at 16:51
Awesome 👌🏻
Parth Sharma · August 9, 2020 at 12:34
Beautifully written and driven……deep and surprising mam…keep up the good work🔥🔥
Siddharth Sharma · August 9, 2020 at 11:55
Waooo such a lovely poetry ♥️♥️