आखिर और कब तक?

मैंने बहोत देखे इंसान
पर खोखले से इस ज़मीर मे मैंने इंसानियत नहीं देखी
मैंने कई रिश्ते निभाए लेकिन रिश्तों में भी खौफनाक हैवानियत ही देखी
हां सच है भाई बहन का रक्षक होता है
वंही इक भाई के हाथों बहन की इज्जत शर्मसार होते देखी
एक पिता जो बेटी का अभिमान होता है
उस पिता की हवस में वो बेटी खून में सनी हुई देखी
कभी मैं अपनों में बटि कभी उन अन्जाने चेहरों से डरी
मात्र मेरे शरीर के लिए इन दरिंदों ने अपनी इंसानियत तक बेची
उस पीडा़ के क्षण भर एहसास से रूह कांप उठती है
लेकिन उस राक्षस ने मेरी आत्मा तक कुचल दी
खो चुका है मेरा अस्तित्व अब मर चुकी है मेरी आत्मा
चीखें गुंजती है मेरी इस अधमरे शरीर में अब भी
बैखोफ फिर से में जीना तो चाहती हूं
तुझ जैसे और भी दरिंदे हैं यहां
उनके नापाक इरादों से सहम में जाती हूं
बिक रहा मेरा जिस्म मेरे अपनों के हाथों अब भी
कोई बताए मुझे ये दहशत का बिखराव बंद होगा के नहीं
औरत के जिस्म का व्यापार खत्म होगा के नहीं
आखिर कब तक समाज मुझे बच्चलन, बेहया, बाज़ारू कह कर चुप करवाता रहेगा
आखिर कब तक ये समाज मेरे कपडों को मेरी इज्जत गंवा देने का कारण बताता रहेगा
आखिर और कब तक ?

Alka Panchal

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142 Comments

Pawan Makwana · October 6, 2020 at 10:06

Awesome 👌🏻👌🏻

Yuvraj · October 6, 2020 at 09:26

Great work 👌👌
And very nicely written.❤️

    Subodh Singh · October 7, 2020 at 15:23

    👌👌👌

PARITOSH · October 6, 2020 at 09:20

Nice

Kapil · October 6, 2020 at 08:55

Sach hai

Neeraj Sharma · October 6, 2020 at 08:23

Nice

Shikha · October 6, 2020 at 02:27

Really such a great piece Alka 👍🔥

Shivam sharma · October 6, 2020 at 00:09

Grt job.. ✌

Ajay singh · October 6, 2020 at 00:05

Nice

Sachin · October 6, 2020 at 00:00

Thanks for stepping up and getting this done for us

Mayur · October 5, 2020 at 23:50

Gud work mere bhai 😎

    Lakshya · October 6, 2020 at 00:28

    Nice

    Rohan saini · October 6, 2020 at 08:24

    Bahut sahi h yr

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