एक बार

एक बार

कुछ खास तो होगा तुम में भी,
कुछ अलग तो होगा तुम में भी;
तुम चाहे जैसे हो,
एक आप तो होगा तुम में भी।

वो नजरिएं हजारों होंगे,
वो तर्क हजारों होंगे,
वो होंगे फैसले हजारों,
वो व्यंग्य भी हजारों होंगे।
पर तुम एक हो,
तुन में अनेक है;
ये सच क्यों नहीं पहचानते?
क्यों खुद को ही खुद से दूर ले जा रहे?
एक कदम खुद की ओर, बढ़ाकर तो देखो;
वो आइने में तुम ही हो,
उसे सराहकर तो देखो।
जिसे हर गलती के लिए कोसा है,
एक बार, उसे देखो तो सही वो जैसा है।
भले हर दर्द सहें तुमने,
पर वो तुमसे कुछ अलग नहीं,
एक बार उसे सामने, बिठाकर तो देखो।

कुछ खास तो होगा तुम में भी,
कुछ अलग तो होगा तुम में भी;
तुम चाहे जैसे हो,
एक आप तो होगा तुम में भी।

चलो औरों की छोड़ों,
एक बार नाता खुद से जोड़ो।
वो वहीं खड़ा,
अब तक राह तक रहा तुम्हारी;
एक बार, उसकी तरफ,
हाथ बढ़ाकर तो देखो।
वो संयमी है,
वो अब तक नही हारा;
वो जीत है,
वो ही है तुम्हारा सहारा।
एक बार, खुद का सहारा,
लेकर तो देखो;
आँखें मूंद,
खुद को आक कर तो देखोl

कुछ खास तो होगा तुम में भी,
कुछ अलग तो होगा तुम में भी;
तुम चाहे जैसे हो,
एक आप तो होगा तुम में भी।

चलो, एक बार बिम्ब के अपने ही,
चल चलते है सामने;
वो बिलकुल पहले जैसा है,
फिर भी एक बार पूछते है,
कि वो कैसा है?
वो दिखने में बिलकुल तेरे जैसा है,
पर ख्यालों का एक पर्चा, उसमे भी रहता है।
तुम्हारी आवाजों के तले,
उसके जज्बात गुम-से जाते हैं,
एक बार, अपनी आवाज़ बिठा,
उसका सन्नाटा सुन कर तो देखा।
अपनी अभिलाषाओं का भार,
उस पर से उठा,
उसकी आकांक्षाओं को, जगा कर तो देखो।

कुछ खास तो होगा तुम में भी,
कुछ अलग तो डोगा तुम में भी;
तुम चाहे जैसे हो,
एक आप तो होगा तुम में भी।

उसकी आँखें सुन्दर है,
पर सूनी है;
वो सबको खुश रखता है,
पर उसकी सुख से थोड़ी दूरी है।
वो सम्भालता सब के जज्बात है,
पर करता न कमी भी खुद से बात है;
वो रखता सब की इच्छाएं सर-आखो पर है,
पर उसकी अभिलाषाएँ अब भी ताखो पर हैं।
एक बार, उसकी ताखो में नजरे,
टिकाकर तो देखा;
सही है क्या, क्या गलत,
सब तर्को के कठघरे में, सजाकर तो देखो।

कुछ खास तो होगा तुम में भी,
कुछ अलग तो होगा तुम में भी,
तुम चाहे जैस हो,
एक आप तो होगा तुम में भी।

आइने के अंदर,
वो आइना लिए बैठा है;
चारों ओर समंदर है,
वो जमीन की तलाश में बैठा है;
आइने का बिम्ब दिशा है,
और वो रास्ता खोकर बैठा है।
एक बार, उसके अंदर के समंदर,
का एहसास करके, तो देखो;
उसके मार्गदर्शक हो तुम,
उसे किनारा दिखाकर, तो देखो।
इसमें कितनी सच्चाई है, कितनी मिथ्या,
ये मै नहीं जानती,
बस मै हूं इतना ही मानती –

कुछ खास तो है, तुम में भी,
कुछ अलग तो है, तुम में भी;
तुम चाहे जैसे हो,
एक आप तो है, तुम में भी ।

कृति गुप्ता (शिव-शक्ति)

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89 Comments

Sharon heldon · October 8, 2020 at 09:04

👍👍👍

Aviral · October 8, 2020 at 09:03

Toooo good 👍🏻👍🏻

Sneha M. Varghese · October 8, 2020 at 08:51

😍😍😍

Yash jha · October 8, 2020 at 08:50

Too good 🔥🔥🔥🔥

Shruti rastogi · October 8, 2020 at 08:46

Mind blowing poem 🤩🤩🤩
Loved it👍👍

Shruti rastogi · October 8, 2020 at 08:45

Awesome poem 👍👍👍👍👍
Mind blowing 🤩🤩🤩🤩

Himadri Shekhar · October 8, 2020 at 07:56

Loved it 😍

SK SHARMA · October 8, 2020 at 07:22

VERY GOOD KEEP GOING

UJJWAL MEHROTRA · October 8, 2020 at 07:18

KEEP IT UP VERY GOOD

Priya Binod · October 8, 2020 at 07:14

Great work girl

😍

😍Poem is

💯

💯

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