आखिर और कब तक?

मैंने बहोत देखे इंसान
पर खोखले से इस ज़मीर मे मैंने इंसानियत नहीं देखी
मैंने कई रिश्ते निभाए लेकिन रिश्तों में भी खौफनाक हैवानियत ही देखी
हां सच है भाई बहन का रक्षक होता है
वंही इक भाई के हाथों बहन की इज्जत शर्मसार होते देखी
एक पिता जो बेटी का अभिमान होता है
उस पिता की हवस में वो बेटी खून में सनी हुई देखी
कभी मैं अपनों में बटि कभी उन अन्जाने चेहरों से डरी
मात्र मेरे शरीर के लिए इन दरिंदों ने अपनी इंसानियत तक बेची
उस पीडा़ के क्षण भर एहसास से रूह कांप उठती है
लेकिन उस राक्षस ने मेरी आत्मा तक कुचल दी
खो चुका है मेरा अस्तित्व अब मर चुकी है मेरी आत्मा
चीखें गुंजती है मेरी इस अधमरे शरीर में अब भी
बैखोफ फिर से में जीना तो चाहती हूं
तुझ जैसे और भी दरिंदे हैं यहां
उनके नापाक इरादों से सहम में जाती हूं
बिक रहा मेरा जिस्म मेरे अपनों के हाथों अब भी
कोई बताए मुझे ये दहशत का बिखराव बंद होगा के नहीं
औरत के जिस्म का व्यापार खत्म होगा के नहीं
आखिर कब तक समाज मुझे बच्चलन, बेहया, बाज़ारू कह कर चुप करवाता रहेगा
आखिर कब तक ये समाज मेरे कपडों को मेरी इज्जत गंवा देने का कारण बताता रहेगा
आखिर और कब तक ?

Alka Panchal

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142 Comments

Riya · October 10, 2020 at 23:33

Dil tk pohoncha he

Geeta · October 10, 2020 at 23:27

Bohot shi…

Yamini · October 10, 2020 at 23:18

Nice lines

Vaibhav upadhyay · October 10, 2020 at 22:02

Perfectly written🙏🙏🙏🙏

archana · October 10, 2020 at 21:12

True and nice line’s 👌

Shweta Sharma · October 10, 2020 at 20:48

Sad but it’s reality 😞

Abhishek Singh · October 10, 2020 at 20:19

beautifully written👏👏

    Simi · October 10, 2020 at 23:22

    👌👌

Aditi panchal · October 10, 2020 at 19:41

These lines attachs soul to it,
Well written!!
This thing really needs alot improvement.

Vinod sharma · October 10, 2020 at 19:26

Very well written beta

Sahil · October 10, 2020 at 18:54

boht hi achha likha h

    Pankaj Verma · October 10, 2020 at 23:12

    Kya khub likha he

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